१९९० के दशक के अंतिम वर्ष मेरे लिए बहुत अच्छे नहीं रहे । एक प्रोफेशनल ब्यूरोक्रेट की तरह मैं अपना कार्य करता रहा और परिणाम भी अच्छे रहे, लेकिन व्यक्तिगत रूप से कठिनाईयां तो रहीं ।
मुझे अपने दो छोटे बच्चों वाले परिवार से लगभग एक वर्ष दूर रहना पड़ा । नर्मदा प्रोजेक्ट पर काम करते हुए वड़ोदरा में एक गेस्ट हाउस में रहता था ।
परिस्थितियां और भी बिगड़ गयीं, जब मेरे पिताजी का दिसंबर, १९९९ में स्वर्गवास हो गया ।
वो मेरे तथा मेरे परिवार के लिए समस्या एवं चुनौती वाले वर्ष थे ।
लेकिन विस्थापितों का पुनःस्थापन एवं भूकंप जैसी आपदा में राहत कार्य करवाकर शायद ईश्वर मुझे दिखाना चाहता था कि मुझसे भी खराब जीवन जी रहे हैं बहुत से लोग ।
अचानक अक्टूबर, २००१ में मेरी नियुक्ति गुजरात के मान. मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के सचिव के रूप में हुई ।
इस सम्मान जनक पोस्टिंग का कारण मैंने पूछने की कोशिशें कीं लेकिन जवाब अभी तक नहीं मिला । लेकिन मेरे जीवन में जो खालीपन आ गया था, उसे मैं पार कर गया क्योंकि उसे याद करने का समय ही नहीं रहा ।
पिछले बीस साल में श्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ काम करते हुए बहुत सारी गलतियां हुई होंगी । लेकिन इतना बड़प्पन है कि उन्होंने कभी नाराजगी या असंतोष व्यक्त नहीं किया । वो हमेशा अपने मातहतों में अच्छाइयां खोजते हैं । और यही उनकी टीम का उत्साहवर्धन करता है, और उन्हे पॉजिटिव रहना सिखाता है ।
बहुत ही विशिष्ट बात है कि इतने सालों में एक बार भी उन्हें अपने स्टाफ या अधिकारियों पर गुस्सा होते हुए नहीं देखा गया है । ऐसे बहुत से अवसर याद हैं जब जब वो किसी गरीब, जरूरतमंद या कमजोर के प्रति संवेदनशील हो जाते थे लेकिन आँखों कि नमी को छिपा जाते थे ।
हम लोग औसतन दिन के १६ घंटे काम करते थे । मैं अक्सर कहता हूँ कि थकावट मानसिक त्रासदी से आता है, शारीरिक श्रम से नहीं । मान. मोदी जी उसी बात को यूं कहा करते थे कि थकावट बाकी रह गए काम से आती है; काम पूर्ण हो जाने पर नहीं रहती ।
उनके साथ बीते हुए बीस साल का एक-एक पल एक नया अनुभव देता है । कई लोग मुझसे पूछते रहे हैं “क्या तुम थके नहीं हो “ ? मेरा जवाब हमेशा यही रहा है कि उनकी ऊर्जा, समर्पण एवं रचनात्मकता बहुत ही आकर्षक है ।
उससे भी बड़ी बात यह है कि मैंने उनके साथ रहकर विशेष रूप से समर्पण, समय का व्यवस्थापन, ईमानदारी, नवीनता एवं ऊर्जावान बने रहना जैसे गुणों को विशेष आत्मासात किया । मेरे जीवन एवं मेरी नौकरी से मैंने यही सीखा है कि हम प्रकृति की रचना एवं कार्य में मात्र निमित्त हैं । इसलिए अपनी भूमिका बखूबी अदा करनी चाहिये ।
बहुत मुश्किल है उन सारी बातों को कह पाना जिनके जरिये या जिन स्वरूपों में मान. श्री नरेन्द्र मोदी जी ने मेरे जीवन को प्रभावित और प्रोत्साहित किया है । फिर भी मैं सुरूर बाराबंकवी का एक शेर पुनः दोहरा रहा हूँ जिसे मैंने २००४/५ में मुख्यमंत्री निवास पर एक कार्यक्रम के दौरान कहा था:
जिनसे मिलकर ज़िंदगी से इश्क़ हो जाए वो लोग, आपने शायद न देखे हों मगर ऐसे भी हैं II
मैं मान. नरेन्द्र मोदी जी के स्वास्थ्य एवं लम्बे जीवन की एवं उनके निरंतर मार्गदर्शन की कामना करता हूँ I